Wednesday, 12 October 2011

ALVIDA JAGJEET !

अलविदा जगजीत!
अंततः रेशमी आवाज़ के धनी और ग़ज़ल के शब्दों को जीता जागता सांस लेता बनाने वाले ग़ज़ल की दुनिया के सदाबहार कलाकार जगजीत सिंह इस फानी दुनिया को अलविदा कह गए.अभी-अभी "लोग:जिनसे मैं मिला" कालम का आरम्भ,मैंने उनसे ही किया था;प्रार्थना भी की थी कि मौला उनकी उम्र लम्बी करें.लेकिन 'मोहल्ले की सबसे पुरानी निशानी,वो बुढिया जिसे लोग कहते थे नानी' की तरह लम्बी उम्र के हक़दार नहीं हो पाए.शायद खुदा उन्हें अपने सामने बिठा कर उनसे ग़ज़ल सुनना चाहता था.लगता है जगजीत का मन भी इस दुनिया से भर गया था ! प्यार का खुशनुमा एहसास अपनी ग़ज़लों से करोड़ों लोगों को कराने वाले जगजीत खुदा से खुद प्यार कर बैठे और सचमुच खुदा को प्यारे हो गए.
         जब मैंने हस्तलिखित पत्रिका के नाम के बारे में सोचा था तो मेरे मन में "कागज़" और "कागद" दो नाम उभरे थे.एक में अतीत को वर्तमान के रास्ते होते हुए भविष्य तक ढोने वाला "कागज़" था,तो दुसरे में कबीर के फक्करी  अंदाज़ में धरती को कागद समझने वाला सूफियाना "कागद" था.....और मैंने कागज़ चुना इस चुनाव के पीछे मेरे अवचेतन मन में जगजीत का गाया,"वो कागज़ की कश्ती,वो बारिश का पानी"का कागज़ भी था और थोडा बहुत किशोर का गाया "मेरा जीवन कोरा कागज़" वाला कागज़ भी.अपने अंदाज़ में जिस कागज़ को मैंने समझा उसपर लिखा मेरा ये शेर मेरी बात कह जाता है-"कुछ संदली एहसास भर उधार लिया है,कहते हैं लोग मैंने तुम्हें प्यार किया है.......कागज़ की हकीकत को कलम से बदल दिया,"ईश्वर" ने ग़ज़ल इस तरह तैयार किया है".आज भी 'कागज़ की कश्ती' सुनते ही मैं 'कागज़' से जुड़ जाता हूँ....जगजीत से जुड़ जाता हूँ.इस तरह मैं तमाम उम्र जगजीत की याद करता रहूँगा क्योंकि मैं अपने हाथों से सजाये-सँवारे हस्तलिखित पत्रिका कागज़ को अपने वजूद का एक हिस्सा मानता हूँ."कागज़" परिवार की तरफ से जगजीत को श्रधांजलि.


ईश्वर करुण,
चेन्नई.

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